Wednesday, September 8, 2021

खुशनसीब - एक दफा खोया इश्क़

तुम खुशनसीब मानो ,
इस जहां में अपने आप को ,
तुमने खोया एक ही दफा ,
किसी बेहद खास को ।

पूछो हाल कभी मेरा ,
और मुझ जैसों का , 
हम तो हर रोज खोते हैं ,
इश्क़ में अकेला जब ,
अक्सर लोग छोड़ देते है ।

बहते नहीं सिर्फ आंखो से आंसू ,
रक्त भी कई दफा बहता है ,
हर रोज इश्क़ में पड़ता मैं ,
हर रोज इश्क़ में वो बिछड़ता है ।

बस फर्क इतना की ,
तुमने तस्वीर और तकदीर ,
दोनों को सच में जिया है ,
हमने तो मोहब्बत भी आज तक ,
बस अधूरा ही किया है ।

स्वर्ग में जा चुका है ,
यकीनन इश्क आप का ,
हम तो आज भी ,
नर्क में ही बैठे हैं ।

हर रोज़ खा कर कसम ,
इश्क में ना पड़ने की ,
एक और दफा टूटने के लिए ,
दिल लगा बैठे है ।

इश्क़ में मारता नहीं कोई ,
इश्क़ में तो जिंदा होते है ,
खुशनसीब है वो सब इश्क़ में ,
जो इश्क़ को बस एक दफा खोते हैं ।

इश्क़ में बदनसीब मुझसा ,
ए खुदा किसी और का ना बनाना ,
बड़ा मुश्किल होता है ,
सुबह जन्म देकर .. रात को दफनाना ।।

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