Sunday, September 5, 2021

तुमने ये क्या कर दिया

मेरे हिस्से का गम तो मैं रखता था ,
खुशियां सब में बांट देता ,
बन कर अंजान अजनबी रास्तों पर ,
मुसाफिरों को रास्ता दिखा देता ।

ना कभी कुछ मांगा उनसे ,
ना कभी उनके पीछे आया ,
जब तक रही जरूरत मेरी ,
बन कर साया साथ निभाया ।

कुछ साथ चंद मिनटों का रहा ,
कुछ घंटों में बीत गया ,
कुछ की उम्र थोड़ी लम्बी थी ,
कुछ मुझसे ही अंजाने में छूट गया ।

पर कभी ना थामा हाथ किसी का ,
कुछ पल ही रुक जाने के लिए ,
एक अकेला काफी हू ,
गम में भी मुस्कुराने के लिए ।

मैं मुसाफ़िर अपनी ही जिंदगी का ,
अपने हिस्से की खुशियां बाटने आया हूं ,
चंद लम्हों की जिंदगी में ,
ताउम्र का एहसास ले आया हूं ।

भटकता मैं मुसाफ़िर महफिलों में ,
घर को तलाश रहा था ,
अल्फाज़ और जज़्बात को पढ़ कर ,
एक मकान बना रहा था ।

तुमने ये क्या कर दिया ,
मेरे हिस्से के शब्दों को ,
अपने शब्दों के श्रृंगार से ,
अमर कर दिया ।।

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