लगा सब खत्म हो गया ,
जिस पल मेरी मांग में ,
सिंदूर वो भरने को आया था ,
जिसने मुझसे दिल लगाया था ।
आंखे थी नम मेरी और ,
धड़कन खामोश पड़ी थी ,
खुशियों के उस मंडप में ,
बस मैं ही मायूस खड़ी थी ।
देखो मुस्कुराहट और खुशियां ,
सब एक दूसरे को बांट रहे थे ,
एक एकले हम थे जो बस ,
किसी और की राह ताक रहे थे ।
मेरा महबूब मुझे छोड़ कर ,
अब कही जा चुका था ,
मुझसी मोहब्बत वो भी ,
मुझसे अब निभा रहा था ।
लगा सब ख़त्म हो गया ,
एक चुटकी भर सिंदूर से ,
हार गई एक और दफा ,
रांझा अपने ही हीर से ।
इश्क़ को शिद्दत से निभाने वाले ,
अक्सर इश्क़ में अधूरे रह जाते हैं ,
सच्चा हो कर भी इश्क़ जिनका ,
उसे मुकम्मल नहीं कर पाते हैं ।।
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