तस्वीर किसी और की दिखा रही ,
नाम किसी और का लेकर ,
पता किसी और का बता रही ।
रास्ते बदल रही हर मोड़ पर ,
नक्शे को भी छिपा रही ,
कभी मिल रही किसी अपने से ,
कभी अजनबी को अपना बता रही ।
भूल कर कल को ,
कल अपना बना रही है ,
आज का मालूम नहीं ,
वादा कल का किए जा रही है ।
इश्क़ में बदनाम हो कर भी ,
दिल खुलेआम लगा रही है ,
गुमनाम शहर के किसी कोने में ,
अपना आशियाना सजा रही है ।
मिल रहे हर ज़ख़्म को ,
घाव खुद बना रही है ,
मरहम लगाने वाले हाथों को ,
जख्मों से भरे जा रही है ।
खैर,
इश्क़ में भला ऐसा कभी ,
कहीं होता है क्या ,
बर्बाद करने वाला भी ,
कभी रोता है क्या ?
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