Thursday, September 16, 2021

बिंदी

मांग में तब सिंदूर भी ना था ,
मेरा इस कदर फितूर भी ना था ,
था तो बस इश्क़ होने को शुरू ,
और भला मैं क्या ही कहूं ।

मुझे आज जी भर के ,
तुम्हें ऐसे ही निहारने दो ,
माथे पर बिंदी को ,
ऐसे ही संवारने दो ।

सज संवर कर हर रोज ,
मेरे सामने जब आती हो ,
बिंदी मेरे हाथों से ही ,
अपने माथे पर लगवाती हो ।

हर बदलता रंग माथे पर ,
तुम्हारे चेहरे पर जचता है ,
श्रृंगार बिंदी का सबसे ,
खूबसूरत तुम पर लगता है ।

तुम से इश्क़ से भी पहले मुझे ,
तुम्हारी बिंदी से इश्क़ हुआ था ,
तुम्हें छूने से पहले मैंने ,
तुम्हारे माथे की बिंदी को छुआ था ।

बिंदी सा खूबसूरत कोई और ,
श्रृंगार कहां होता है ,
उम्र की हर दहलीज पे ,
खूबसूरती जो बिखेरता है ।।

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