बिखरी जुल्फें तेरी ,
और उलझते मेरे जज़्बात ,
क्या ही बचा है रखा हमनें ,
सिवाए तेरे वो चंद "अल्फाज़ " ।
आंखे पढ़ना भूल गया मैं ,
जब से तुमको पढ़ने लगा हू ,
अजब है हाले दिल मेरा ,
बस अब तुमसे मिल रहा हू ।
हो रही मोहबब्त आज कल भी ,
मुझे हर सुबह शाम है ,
पर आज कल ना जाने ,
हर इश्क़ में बस तेरा ही नाम है ।
खोल दो दरवाज़े दिल के ,
जो अब तक बंद कर के बैठी हो ,
बड़ी मुश्किल से हो रहा मुकम्मल ख़्वाब ,
जिसे तुम अधूरा जी कर बैठी हो ।
ये लम्हा ये पल और तुम ,
सब अब सुलझने से लगे हैं ,
खुली जुल्फें भी हाले दिल ,
क्या खूब अब कहने लगे हैं ।
आज खुली बिखरी जुल्फों को ,
मैं अपने हाथों से सुलझाऊंगा ,
पहली दफा अल्फाजों को छोड़ ,
खुद तेरा श्रृंगार करने आऊंगा ।।
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