Sunday, September 5, 2021

पहेली

तेरे रास्तों में छिपी अनगिनत ,
मंजिलों के बिछड़ने की कहानियां ,
तुम किसको सुना रही हो ,
किसका सच किससे झुठला रही हो ।

ये हल्की सी रौशनी जो तुमको ,
दो हिस्से में बांट रही है ,
हाले दिल और गुजरते दौर की ,
कहानी वो बता रही है ।

गुमसुम भी और शोर भी है ,
कहानियों में छिपा कोई और भी है ,
तुम ऐसे ही खामोशी से नहीं मिलती हो ,
हर रोज अनगिनत शोर से गुजरती हो ।

पलकों पर नमी नहीं आती ,
आंखो में ही छिप जाती है ,
दास्ताने जिंदगी पन्नों पर लिख ,
अक्सर अब वो सुनाती है ।

मुस्कुराती है जिंदगी के फैसलों पर ,
खुद को खुद से छिपा कर ,
जिंदा पड़े ताज़ा जख्मों को ,
भरा हुआ बता कर ।

पर कब तक ऐसे ही अल्फाजों से ,
गुफ्तगू तुम खामोशी से करती रहोगी ,
शोर होने पर भी अपने इर्दगिर्द ,
क्या अब भी तुम खामोश रहोगी ।

मुस्कुराहट से खुद को ,
किसी रोज़ सजा कर देखो ,
आईने में खुद से ,
कभी नज़रे मिला कर देखो ।

सब कुछ पल भर में ,
देखना कैसे बदल जायेगा ,
रास्ता तुम्हें अपनी मंजिल का ,
अपनी आंखो में नजर आएगा ।।

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