खुशबू थी फिज़ा में ,
तेरी सड़क से हम जब गुजर रहे थे ,
दूर हो कर भी तुम मुझसे ,
इत्र फिज़ा में छिड़क रहे थे ।
तेरे जैसी खुशबू ,
अब मुझसे भी आ रही थी ,
जहनी मोहब्बत को ,
तू सच में जता रही थी ।
देखो खींचा चला आ रहा ,
कैसे मैं तुम्हारी ओर ,
थाम ली है जबसे तुमने ,
मेरे मोहब्बत की डोर ।
वक्त गुजरने पर भी ,
सब ठहरा सा लगता हैं ,
छिप छिप कर रास्तों में ,
अक्सर तू मुझे तकता है ।
जैसे तेरे जाने के बाद भी ,
तेरी खुशबू फिज़ा से नहीं जाती ,
वैसे ही जिस्म से अलग होते ही ,
तू मेरे रूह में बस जाती ।।
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