बड़ी उलझनों से गुजर रहा ,
मैं और मेरा दिल था ,
थी मुश्किल भी बहुत ,
और दूर बहुत मंजिल था ।
फैसले और फासलों में ,
कुछ भी नहीं था मालूम ,
चल पड़ा था पहले ही ,
ख्वाबों का हुजूम ।
मैं डर रहा था डगर से ,
और वक्त भी कम बचा था ,
अपने ही लिखे आखिरी अल्फाज़ ,
मैं अब पढ़ रहा था ।
हुई मायूसी और थोड़ी उदासी ,
अपना हाले दिल जान कर ,
बड़ी मुश्किल से संभाला था ,
किसी गैर को अपना मान कर ।
अब तो बस ख़त्म होने को ,
मेरे जिंदगी का अध्याय था ,
बड़ी दूर तक जिसे मैं ,
बेवजह खींच लाया था ।
मेरी मोहब्बत की ये ,
आखिरी तुमको सौगात है ,
जिंदगी थी बस तुमसे ही ,
तुम्हारे बाद बस मौत का साथ है ।
हार कर भी जीत जाता मैं ,
बस अगर तुम साथ होते ,
मौत होती मुझसे बेहद दूर ,
गर तुम पास होते ।।
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