खनक रही थी ,
चमक भी रही थीं ,
हाथों में जब अपने वो ,
चूड़ियां पहन रही थी ।
श्रृंगार था पूरा ,
पर सौन्दर्य था अधूरा ,
था नहीं पहना उसने ,
जब तक हाथों में चूड़ा ।
हर कदम और हर खनक ,
झुकी पलके और अनगिनत ख़्वाब ,
जीने को हो रहा था जिसे ,
अब मन उसका बेताब ।
दिल को दिल से लगाना ,
किसी गैर को अपना बनाना ,
चूड़ियों की खनक समझाना ,
और बस इश्क़ में पड़ जाना ।
चूड़ियों से भला बेहतर ये ,
कौन ही निभा पाता होगा ,
इश्क़ की मौजूदगी जिंदगी भर ,
खनक से अपने जो बताता होगा ।
क्या खूब रंगीन मौसम ,
देखो हर तरफ होने लगा हैं ,
तेरे चूड़ियों के रंग से ,
जो खुद को रंगने लगा है ।
चूड़ियां श्रृंगार का हिस्सा नहीं ,
जिंदगी का किस्सा बताती हैं ,
ना हो गर मौजूद हाथों में ,
सन्नाटे में शोर मचाती हैं ।।
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