मेरी आंखों में बसी तस्वीर तुम्हारी ,
अब शक्ल बदलने लगी है ,
मेरी मोहब्बत बदल कर चाल ,
अब बस तेरी ओर चलने लगी है ।
ना मुझे कोई रास्ता समझ आता ,
ना ही कोई और मंजिल नजर आती है ,
बस बढ़ते जो भी रास्ते तेरी ओर ,
वो मेरी मंजिल बन जाती है ।
तुमसे मोहब्बत ही नहीं ,
तुम्हारा फितूर मुझे भाने लगा है ,
तेरा जिक्र जबसे हर सुबह ,
मेरे जहन में आने लगा है ।
तेरा ख़्याल ही काफी हैं ,
मेरे ख़्वाब सजाने के लिए ,
दफ्न हो चुके इस लाश को ,
जिंदा कर जाने के लिए ।
तुम आई हो हुबहू बन कर ,
मेरी वो बिछड़ी मोहब्बत ,
जिस पर मैं सब लूटा बैठा था ,
जिससे मैं दिल लगा बैठा था ।
तुम हो मेरी जिंदगी का वो किस्सा ,
जैसे हो धड़कन दिल का हिस्सा ,
तुम हो मेरी अधूरी वो कहानी ,
लिखनी जिसकी हो पूरी जिंदगानी ।।
No comments:
Post a Comment