Sunday, September 12, 2021

आधा इश्क़

मैं देख रहा तुम्हारी आखों में ,
जो भी आज कल ,
क्या वही सच है हमारा ,
या अभी और बची है हलचल ।

तुम कितनी सादगी से ,
हर सच को बतलाती हो ,
एक ही दिल है पास मेरे ,
हर दफा चुरा ले जाती हो ।

ये बारिश गर फिर बरस गई ,
तो अब रोकना तुम्हें मुश्किल होगा ,
जो कुछ भी है दिल में अब तक ,
लबों से सब ज़ाहिर होगा ।

दिन काटे से भी अब ,
देखो कट ना रहें ,
दूर जाने की कोशिश में भी ,
हम एक दूसरे से बट ना रहे ।

अल्फाज़ का असर ,
कुछ ऐसा उनपर पर चढ़ रहा  ,
हो कर मौजूद कही ,
कही और वो रह रहा ।

बेताबी कहूं तेरी इसे ,
या खुद की बेकरारी ,
रोकने से भी नहीं रुक रही ,
ये दीवानगी हमारी ।

ख्वाइश और तमन्ना के बीच ,
फर्क नहीं कोई ज्यादा है ,
तोड़ना मुश्किल हैं जिसे ,
वो खुद से किया वादा हैं ।

यकीनन अब हद से बेहद ,
होने का हम दोनों का इरादा हैं ,
दरमियान हमारे अब भी
बहुत कुछ आधा है ।।

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