Wednesday, September 22, 2021

पराया तौफ़ा

हर तरफ जश्न और खुशियों में ,
किसी एक की ख्वाइश थी ,
बहुत दूर जिसे जिंदगी मेरी ,
अब मुझसे कर आई थी ।

चंद लम्हों और लफ्जों से ,
उसका जादू मुझपर ,
कुछ इस कदर चढ़ा था ,
उसकी राह मैं अब तक देख रहा था ।

हर रात हर दिन ,
बस उससे ही होता था ,
मेरे गम , मेरी खुशियों की वजह ,
बस वही होता था ।

उससे रिश्ता शायद एक तरफा था ,
या मैंने हक से नहीं निभाया ,
देखो ना वक्त से पहले ही ,
बेवक्त बेवजह वो मुझे छोड़ आया ।

मिले थे हम पहली दफा ,
उसके घर खुशियां आने पर ,
लगा था मिलेगी वो भी मुझे ,
आज का दिन आ जाने पर । 

चांद बन कर आज भी ,
उसका इंतजार अक्सर करता हु ,
आता नहीं बस अब उसके करीब ,
उसे खोने से डरता हु ।

शब्दों का सौदागर बनाकर ,
सौदा जिंदगी का हो रहा है ,
चांद के सबसे करीब तारा ,
अब आकाश गंगा में खो रहा है ।।

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